लोकमाता अहिल्याबाई होलकर Rajmata Ahilyabai Holkar Ji जीवन परिचय History Life Story of Ahilya Bai Holkar/ Biography


ईश्वर ने मुझ पर जो उत्तरदायित्व दे रखा है,
                      उसे मुझे निभाना है।
              मेरा काम प्रजा को सुखी रखना है,
मैं अपने प्रत्येक काम के लिये जिम्मेदार हूँ। 
सामर्थ्य और सत्ता के बल पर मैं यहाँ- जो कुछ भी कर रही हूँ,
उसका ईश्वर के यहाँ मुझे जवाब देना होगा। 
मेरा यहाँ कुछ भी नहीं हैं, जिसका है उसी के पास भेजती हूँ,
               जो कुछ लेती हूँ, वह मेरे उपर कर्जा है,  
न जाने कैसे चुका पाऊँगी। 
                    – अहिल्याबाई होलकर 
तो आइए जानते हैं इस महान राजमाता महारानी अहिल्याबाई होलकर के बारे में –
              लोकमाता अहिल्याबाई होलकर 

  • पूरा नाम-  अहिल्याबाई खंडेराव होलकर 
  • जन्म- 31 मई 1725
  • जन्म स्थान - ग्राम चौंढी, जामखेड , अहमदनगर, महाराष्ट्र, भारत
  • पिता- मान्कोजी शिंदे 
  • माता - शुशीलाबाई
  • पति- खंडेराव होलकर 
  • ससुर - सूबेदार मल्हारराव होलकर
  • पुत्र- मालेराव होलकर
  • पुत्री - मुक्ताबाई
  • घराना - होल्कर 
  • राजवंश - मराठा साम्राज्य 
  • धर्म - हिंदू , धनगर 
  • मालवा साम्राज्य- मालवा राज्य की महारानी
  • शासनावधि-  1  दिसंबर 1767  - 13  अगस्त 1795 )
  • राज्याभिषेक- 11  दिसंबर, 1767 
  • पूर्वज - माळेराव होल्कर
  • उत्तराधिकारी - तुकोजीराव होल्कर
  • पति का निधन- पति की मौत कुंभेर युद्ध के दौरान 1754 में हुई थी।
  • देहांत- 13 अगस्त 1795 को; तिथि उस दिन भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थी। 
     जीवन परिचय 
  • अहिल्याबाई होल्कर का जन्म ग्राम चौंढी, जामखेड , जनपद- अहमदनगरमहाराष्ट्र के एक साधारण परिवार में  था।  उनके पिता मान्कोजीराव शिंदे धनगर समाज से थे और  गाँव के पाटिल थे। 
  • उनकी  भौतिक शिक्षा -दीक्षा बहुत ही साधारण लेकिन संस्कार की शिक्षा बहुत ऊँची थी। उनकी  जीवन बहुत साधारण तरीेके से गुजर रहा था।  
  • लेकिन भाग्य ने एक दिन करवट बदला , मल्हार राव होल्कर उस समय जो पेशवा बाजीराव के सेना में एक कमांडर के रूप में नियुक्त थे, एक दिन पुणे जा रहे थे और रास्ते में चौंढी गाँव में अचानक उनकी नज़र अहिल्या बाई पर पड़ी जो एक मंदिर में सेवा का कार्य करती करती और आरती गाती थी, उसी से प्रभावित होकर , मल्हार राव ने उन्हें अपनी बहु बनाने का मन बना  लिया था। 
  • अहिल्याबाई 10 वर्ष की कम उम्र में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं। 
  • सन् 1745 में अहिल्याबाई को  पुत्र हुआ जिसका नाम मालेराव होलकर  और तीन वर्ष बाद एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम  मुक्ताबाई रखा गया। 
  • अहिल्याबाई पर मुसीबत की घड़ी   तब घिर आयी जब वर्ष  1754 में कुम्भार के युद्ध के दौरान उनके पति खांडेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हुए। 
  • अहिल्याबाई उनतीस (29 ) वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं।
  • इसके 12  साल बाद ही उनके ससुर मल्हार राव होल्कर की मृत्यु हो गयी। 
  • वह  जब 42 -43  वर्ष की थीं, तब ही उनके पुत्र मालेराव का देहांत हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, तभी दौहित्र नत्थू उनका साथ छोड़ दिया।  
  • उसके चार वर्ष पश्चात् ही उनके  दामाद यशवंतराव फणसे की मृत्यु  हो गयी  और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। 
  • अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को 1767 वर्ष में अपना सेनापति नियुक्त किया।  
               विकास एवं निर्माण कार्य में  योगदान 
  • वह एक न्याय प्रिय रानी थीं।  
  • चाहे अमीर हो चाहे गरीब सबको एक समान न्याय की व्यवस्था का प्रावधान था, उचित समय व कम  खर्च पर न्याय दिलाने हेतु उन्होंने जगह-जगह पर न्यायालय स्थापित किए थे। 
  • वे स्वयं अंतिम निर्णय करती थीं तथा निर्णय करते समय सत्य के प्रतीक के रूप में मस्तक पर सोने  से बने  शिवलिंग धारण करती थी। 
  • रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर ले गईं। वहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। माहेश्वर, साहित्य, संगीत, कला और उद्योग के लिए जाना जाता था।
    महेश्वर किला 
  • हिमालय से लेकर दक्षिण भारत के कोने-कोने तक उन्होंने इस पर खूब पैसा खर्च किया। काशी, गया, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनारायण,सोमनाथ, रामेश्वर और जगन्नाथ पुरी के ख्यात मंदिरों में उन्होंने खूब निर्माण कार्य करवाए।
  • रानी अहिल्याबाई ने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर, गया में विष्णु मन्दिर बनवाये। 
  • अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर हिंदुस्तान  के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए।
  • घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया , मार्ग बनवाए-सुधरवाए।  
    अहिल्या घाट (बनारस )
  • भूखों के लिए अन्यक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं।   
  • मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन करने  की व्यवस्था किया  । 
  • आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह माया का उन्होंने सर्वदा परित्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं। 
  • अपने जीवन की अंतिम साँस तक उन्होंने अपना जीवन लोगो की भलाई के काम में समर्पण कर दिया। 
  • ये एक ऐसी  परंपरा की नींव रखीं थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और जिसका अनुपालन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया।
  •  उनके जीवनकाल में ही उन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों  से देखा ही था। 
  • जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी और  शासन- व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। ऐसे समय में प्रजाजन साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में अपना जीवन बिता रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अंधविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति ही थी, न  ही न्याय पर विश्वास। उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया, और बहुत किया। वह कभी भुलाया नहीं जा सकता है ।
  • इंदौर उस समय  एक छोटे से गांव था  उनके 30 साल के शासन में  फलते-फूलते शहर में तब्दील हो गया। अहिल्याबाई ने ही मालवा में  किले और सड़कें बनवाने का काम किया।
  • इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव मनाया  जाता  है। 
  • अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि महेश्वर में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।
  • उनके शासन के दौरान सभी उद्योग फले-फुले और किसान भी आत्म-निर्भर थे।                        
ऐनी बेसंट लिखती हैं, “उनके राज में सड़कें दोनों तरफ से वृक्षों से घिरी रहती थीं। राहगीरों के लिए कुएं और विश्रामघर बनवाये गए। गरीब, बेघर लोगों की जरूरतें हमेशा पूरी की गयीं। आदिवासी कबीलों को उन्होंने जंगलों का जीवन छोड़ गांवों में किसानों के रूप में बस जाने के लिए मनाया। हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्मों के लोग सामान भाव से उस महान रानी के श्रद्धेय थे और उनकी लम्बी उम्र की कामना करते थे।   
  • कहते हैं  कि रानी अहिल्‍याबाई के स्‍वप्‍न में एक बार भगवान् शिव आये। वे भगवान शिव की भक्त थीं और इसलिए उन्‍होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
अहिल्या बाई का कुछविशेष कार्य -
  • आलमपुर (म.प्र) - हरिहरेश्वर, बटुक, मल्हीमर्थखंड, सूर्य, रेणुका, राम हनुमान मंदिर, श्रीराम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, मारुति मंदिर, नरसिंह मंदिर, खंडो मार्तंड मंदिर, मल्हारराव का स्मारक 
  • अमरकंटक- श्री विश्वेश्वर मंदिर, कोटिथीर्थ मंदिर, गोमुखी मंदिर, धर्मशाला, वंश कुंड
  • अम्बा गाँव - मंदिर के लिए दीपक
  • आनंद कानन - विश्वेश्वर मंदिर
  • अयोध्या (U.P) - निर्मित श्री राम मंदिर, श्री त्रेता राम मंदिर, श्री भैरव मंदिर, नागेश्वर / सिद्धनाथ मंदिर, शरयू घाट, कुआं, स्वर्गद्वारी मोहताजखाना, धर्मशालाएँ
  • बद्रीनाथ मंदिर (यूपी) - श्री केदारेश्वर और हरि मंदिर, धर्मशाला (रंगदाटी, बीदरचट्टी, व्यासगंगा, तंगनाथ, पावली), मनु कुंड (गौरकुंड, कुंडचारी), देव प्रयाग में उद्यान और गर्म पानी का कुंड, गायों के लिए पादरी भूमि।
  • बीड - एक घाट का जिर्णोधार।
  • बेलूर (कर्नाटक) - गणपति, पांडुरंग, जलेश्वर, खंडोबा, तीर्थराज और अग्नि मंदिर, कुंड
  • भानपुरा - नौ मंदिर और धर्मशाला
  • भरतपुर - मंदिर, धर्मशाला, कुंड
  • भीमाशंकर - गरीबखाना
  • भुसावल - चांगदेव मंदिर
  • बिट्ठुर - भ्रामघाट
  • बुरहानपुर (एमपी) - राज घाट, राम घाट, कुंड
  • चंदवाड वैपगाँव - विष्णु मंदिर और रेणुका मंदिर
  • चौंडी - चौदेश्वरदेवी मंदिर, सिनेश्वर महादेव मंदिर,
  • अहिल्येश्वर मंदिर, धर्मशाला, घाट,
  • चित्रकूट - श्री रामचंद्र का प्राणप्रतिष्ठा
  • Cikhalda - अन्नक्षेत्र
  • द्वारका (गुजराथ) - मोहताजखाना, पूजा घर और पुजारी को कुछ गाँव दिए
  • एलोरा -ग्रिशनेश्वर रेड स्टोन का मंदिर
  • गंगोत्री - विश्वनाथ, केदारनाथ, अन्नपूर्णा, भैरव मंदिर, कई धर्मशालाएँ
  • गया (बिहार) - विष्णुपद मंदिर
  • गोकर्ण - रेवलेश्वर महादेव मंदिर, होल्कर वाड़ा, बगीचा और गरीबखाना
  • ग्रुनेश्वर (वेरुल) - शिवालय तीर्थ
  • हंडिया - सिद्धनाथ मंदिर, घाट और धर्मशाला
  • हरिद्वार (उत्तराखंड) - कुशावरथ घाट और एक विशाल धर्मशाला
  • हृषिकेश - कई मंदिर, श्रीनाथजी और गोवर्धन राम मंदिर
  • इंदौर - कई मंदिर और घाट
  • जगन्नाथ पुरी (ओरिस) - श्री रामचंद्र मंदिर, धर्मशाला और उद्यान
  • जलगाँव - राम मंदिर
  • जामघाट - भूमि द्वार
  • जामगाँव - रामदास स्वामी मठ के लिए दान दिया
  • जेजुरी - मल्हारगौतेश्वर, विठ्ठल, मार्तंड मंदिर, जनाई महादेव और मल्हार झीलें
  • कर्मनासिनी नदी - पुल
  • काशी (बनारस) - काशी विश्वनाथ मंदिर, श्री तारकेश्वर, श्री गंगाजी, अहिल्या द्वारकेश्वर, गौतमेश्वर, कई महादेव मंदिर, मंदिर घाट, मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेघ घाट, जनाना घाट, अहिल्या घाट, उत्तरकाशी धर्मशाला, रामेश्वर, रामेश्वर, रामेश्वर, रामेश्वर शीतला घाट
  • केदारनाथ - धर्मशाला और कुंड
  • कोल्हापुर - मंदिर पूजा की सुविधाएँ
  • कुम्हेर - वेल एंड मेमोरियल ऑफ प्रिंस खंडेराव
  • कुरुक्षेत्र (हरियाणा) - शिव शांतनु महादेव मंदिर, पंचकुंड घाट, लक्ष्मीकुंड घाट
  • महेश्वर - सैकड़ों मंदिर, घाट, धर्मशालाएँ और घर
  • ममलेश्वर महादेव हिमाचल प्रदेश - लैंप
  • मानसा देवी - सात मंदिर
  • मंडलेश्वर - शिव मंदिर घाट
  • मिरी (अहमदनगर) - 1780 में भैरव मंदिर
  • नईमबार (म.प्र) - मंदिर
  • नंदुरबार - मंदिर, खैर
  • नाथद्वारा - अहिल्या कुंड, मंदिर, खैर
  • नीलकंठ महादेव - शिवालय और गोमुख
  • निमिषारण्य (उ.प्र।) - महादेव माड़ी, निमसर धर्मशाला, गो-घाट, वक्रतुरी कुंड
  • निमगाँव (नासिक) - कुण्ड 
  • ओंकारेश्वर (सांसद) - ममलेश्वर महादेव, अमलेश्वर, त्रयंबकेश्वर मंदिर (जिरनोधर), गौरी सोमनाथ मंदिर, धर्मशाला, कुएँ
  • ओजर (अहमदनगर) - 2 कुएं और कुंड
  • पंचवटी, नासिक - श्री राम मंदिर, गोरा महादेव मंदिर, धर्मशाला, विश्वेश्वर मंदिर, रामघाट, धर्मशाला
  • पंढरपुर (महाराष्ट्र) - श्री राम मंदिर, तुलसीबाग, होल्कर वाडा, सभा मंडप, धर्मशाला और मंदिर के लिए चांदी के बर्तन दिए, जिसे बागीराव कुएं द्वारा जाना जाता है।
  • पिम्पलस (नासिक) -  कुंड
  • प्रयाग (इलाहाबाद यूपी) - विष्णु मंदिर, धर्मशाला, उद्यान, घाट, महल
  • पुणे - घाट
  • पूनमबे (महाराष्ट्र) - गोदावरी नदी पर घाट
  • पुष्कर - गणपति मंदिर, धर्मशाला, गार्डन
  • रामेश्वर (TN) - हनुमान मंदिर, श्री राधा कृष्ण मंदिर, धर्मशाला, वेल, गार्डन आदि।
  • रामपुरा - चार मंदिर, धर्मशाला और मकान
  • रावेर - केशव कुंड
  • सकरगाँव - कुंड
  • सम्भल - लक्ष्मी नारायण मंदिर और दो कुएँ
  • संगमनेर - राम मंदिर
  • सप्तश्रृंगी - धर्मशाला
  • सरधना मेरठ - चंडी देवी मंदिर
  • सौराष्ट्र (गुज़) - 1785 में सोमनाथ मंदिर। (जिरनोध और प्राण प्रतिष्ठा)
  • अहमदनगर जिले के सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर का आंतरिक गर्भगृह
  • श्री नागनाथ (दारुखवन) - 1784 में पूजा शुरू की
  • श्रीशैलम मल्लिकार्जुन (कुरनूल, एपी) - भगवान शिव का मंदिर
  • श्री शंभु महादेव पर्वत शिंगनापुर (महाराष्ट्र) - खैर
  • श्री वैजनाथ (पराली, महा) - 1784 में बैजनाथ मंदिर का जिर्णोधार
  • श्री विघ्नेश्वर - दीपक
  • सिंहपुर - शिव मंदिर और घाट
  • सुलेश्वर - महादेव मंदिर, अन्नक्षेत्र
  • सुल्तानपुर (खानदेश) - मंदिर
  • तराना - तिलभांडेश्वर शिव मंदिर, खेड़ापति, श्रीराम मंदिर, महाकाली मंदिर
  • तेहरी (बुंदेलखंड) - धर्मशाला
  • त्र्यंबकेश्वर (नासिक) - कुशावरथ घाट पर पुल
  • उज्जैन (म.प्र।) - चिंतामन गणपति, जनार्दन, श्रीलाला उर्मोत्तम, बालाजी तिलकेश्वर, रामजानकी रास मंडल, गोपाल, चिटनीस, बालाजी, अंकपाल, शिव और कई मंदिरों, 13 घाटों, कुओं और कई धर्मशालाओं आदि।
  • वाराणसी, काशी विश्वनाथ मंदिर 1780.
  • वृंदावन (मथुरा) - चैन बिहारी मंदिर, कालियाडीह घाट, चिरघाट और कई अन्य घाट, धर्मशाला, अन्नकस्त्र
  • वैपगाँव (नासिक) - होलकर वाड़ा और एक कुआँ
                शिव जी की परम  भक्त
  • उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना में लीन था । भगवान शिव को वह अपना अराध्य देव मानती थी । 
  •  सारा राज्य उन्होंने भोले शंकर को अर्पित कर रखा था और आप उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी।  सुबह  पूजा पाठ करने के बाद ही वह अन्न एवं  जल  ग्रहण  करती थीं।
  • 'संपति सब रघुपति के आहि'—सारी संपत्ति भगवान की है, इसका भरत के बाद प्रत्यक्ष और एकमात्र उदाहरण शायद वही थीं। 
  • वह राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थीं। नीचे केवल श्री शंकर लिख देती थीं। 
  • उनके रुपयों पर शंकर का लिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसों पर नंदी का चित्र अंकित है। उनके बाद से लेकर भारतीय स्वराज्य की प्राप्ति तक इंदौर के सिंहासन पर जितने नरेश आये सबकी राजाज्ञाऐं जब तक की श्रीशंकर आज्ञा जारी नहीं होती, तब तक वह राजाज्ञा नहीं मानी जाती थी और उस पर अमल भी नहीं होता था। 
  • अहिल्याबाई का रहन-सहन बिल्कुल सादा था। शुद्ध सफ़ेद वस्त्र धारण करती थीं। जेवर आदि कुछ नहीं पहनती थी। भगवान की पूजा, अच्छे ग्रंथों को सुनना ओर राजकाज आदि में नियमित रहती थी।
हाथ में गुलाब चढ़ा शिवलिंग
  • राजमाता अहिल्याबाई  की छबि  दिमाग में आते ही उनकी बैठी हुई, हाथ में गुलाब चढ़े शिवलिंग की मूर्ति की आंखों के सामने छा आती है। 
  •  इस मूर्ति में जो शिवलिंग देवी अहिल्या ने हाथ में ले रखा है, वह पूरी तरह से ठोस सोने का बना है।
  •  200 साल पुराने सोने के शिवलिंग को आज भी सुरक्षित रखा गया है। हर रोज पूजन-अर्चन होता है।
  • राजपरिवार के 32 साल से मंदिर के पुजारी पं लीलाधर वारकर कहते हैं, देवी अहिल्या देशभर से शिवलिंग लेकर आई थीं, जिनका पूजन आज भी हर दिन किया जाता है। इनके साथ ही महारानी के हाथ में विराजित शिवलिंग का पूजन भी होता है।
                     महिला सशक्तीकरण का कार्य 
  • अहिल्याबाई ने स्त्रियों का हमेशा ही सम्मान किया, उनको  उचित स्थान दिया। अहिल्या बाई की ख़ास विशेष सेवक एक महिला ही थी। 
  •  नारीशक्ति का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने यह बता दिया कि स्त्री किसी भी स्थिति में पुरुष से कम नहीं है। वे स्वयं भी पति के साथ रणक्षेत्र में जाया करती थीं। पति के मृत्यु  के बाद भी वे युध्द क्षेत्र में जाती  थीं और सेनाओं का नेतृत्व करती रहती थीं।
  •  अहिल्याबाई के गद्दी पर बैठने के पहले शासन का ऐसा नियम था कि यदि किसी महिला का पति मर जाए और उसका पुत्र न हो तो उसकी संपूर्ण संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाती थी, परंतु अहिल्या बाई ने इस क़ानून को बदल दिया और मृतक की विधवा को यह अधिकार दिया कि वह पति द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति की वारिस रहेगी और अपनी इच्छानुसार अपने उपयोग में लाए और चाहे तो उसका सुख भोगे या अपनी संपत्ति से जनकल्याण के काम करे। 
  • अपने शासनकाल में उन्होंने नदियों पर जो घाट स्नान आदि के लिए बनवाए थे, उनमें महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था भी हुआ करती थी। स्त्रियों के मान-सम्मान का बड़ा ध्यान रखा जाता था।
  •  लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने का जो घरों में थोड़ा-सा चलन था, उसे विस्तार दिया गया। दान-दक्षिणा देने में महिलाओं का वे विशेष ध्यान रखती थीं।
  • किसी महिला का पैरों पर गिर पड़ना अहिल्या बाई को पसन्द नहीं था। वे तुरंत अपने दोनों हाथों का सहारा देकर उसे उठा लिया करती थीं। उनके सिर पर हाथ फेरतीं और ढाढस बंधाती। रोने वाली स्त्रियों को वे उनके आंसुओं को रोकने के लिए कहतीं, आंसुओं को संभालकर रखने का उपदेश देतीं और उचित समय पर उनके उपयोग की बात कहतीं।
विचारधाराएं
  • अहिल्याबाई के संबंध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं। एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया गया  है।
  •  वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा। अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला।
  • अहिल्याबाई को एक दार्शनिक रानी के रूप में भी जाना जाता है। अहिल्याबाई एक महान् और धर्मपारायण स्त्री थी। वह हिंदू धर्म को मानने वाली थी और भगवान शिव की बड़ी भक्त थी।

एक महान योद्धा, कुशल राजनीतिज्ञ एवं प्रभावशाली शासक
  • कोई भी  नारी  वह चाहे राज परिवार की हो या फिर कोई साधारण  औरत, जिसने अपने पति, पिता समान ससुर और इकलौते बेटे को खो दिया, उसकी स्थिति की कल्पना किया जा  सकता है।  अपने इस दुःख के साये को उन्होंने शासन-व्यवस्था और अपने लोगों के जीवन पर नहीं पड़ने दिया।
  • अहिल्याबाई ने कई युद्ध का नेतृत्व किया। वे एक साहसी योद्धा थी और बेहतरीन तीरंदाज। हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी। हमेशा आक्रमण करने को तत्पर भील और गोंड्स से उन्होंने कई बरसों तक अपने राज्य को सुरक्षित रखा।
  • महारानी अहिल्याबाई होलकर की पहचान  पुरे मालवा प्रांत में राजमाता अहिल्यादेवी होलकर के रुप में थी, उनके अद्भुत साहस और अदम्य प्रतिभा को देख कर बड़े-बड़े महाराजा एवं प्रभावशाली शासक भी आश्चर्यचकित्र रह जाते थे।
  • रानी अहिल्याबाई होलकर मालवा की  एक बहादुर योद्धा और प्रभावशाली शासक होने के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। जब मराठा पेशवा अंग्रेजों के इरादे नहीं समझ पाए तब उन्होंने दूरदृष्टि रखते हुए पेशवा को आगाह करने के लिए साल 1772 में पत्र लिखा।  
  • अहिल्याबाई होल्कर ने अपने स्वार्थ अथवा अपनी सी माओं के बिस्तर के लिए युद्ध कभी नहीं किए लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वे भीरू थीं।  जब किसी ने इन्दौर राज्य पर ईंट फेंकी तो  देवी ने उसका  मुंहतोड़  जवाब  दिया।  उनका कहना था कि “समस्त भारत की जनता एक है हमारा राज्य बड़ा है और उनका छोटा, हम महान हैं, और दूसरे हम से छोटे -इस भेदभाव का विष एक दिन हम सबको नरक में धकेलेगा” 
  • मल्हारराव के भाई-बंदों में तुकोजीराव होल्कर एक विश्वासपात्र युवक थे। 
  • मल्हारराव ने उन्हें भी सदा अपने साथ में रखा था और राजकाज के लिए तैयार कर लिया था। 
  • अहिल्याबाई ने इन्हें अपना सेनापति बनाया और चौथ वसूल करने का काम उन्हें सौंप दिया। 
  • वैसे तो उम्र में तुकोजीराव होल्कर अहिल्याबाई से बड़े थे, परंतु तुकोजी उन्हें अपनी माता के समान ही मानते थे और राज्य का काम पूरी लगन ओर सच्चाई के साथ करते थे। 
  • अहिल्याबाई भी उन्हें पुत्र जैसा मानती थीं उन पर  उनका बहुत ही  प्रेम और विश्वास था। राज्य के काग़ज़ों में जहाँ कहीं उनका उल्लेख आता है वहाँ तथा मुहरों में भी 'खंडोजी सुत तुकोजी होल्कर' इस प्रकार कहा गया है I
    देश में स्‍थान 
  • स्‍वतंत्र भारत में अहिल्‍याबाई होल्‍कर का नाम बहुत ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्‍यों की पाठ्य पुस्‍तकों में अध्‍याय मौजूद हैं।
  • अहिल्‍याबाई होल्‍कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्‍होंनें भारत के अलग अलग राज्‍यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमायें बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्‍याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।
    अहिल्याबाई होल्कर प्रतिमा(महाराष्ट्र सदन- दिल्ली)

  • उनकी महानता और सम्मान में भारत सरकार ने 25 अगस्त 1996 को उनकी याद में एक डाक टिकट जारी किया। 
    • इंदौर के नागरिकों ने 1996 में उनके नाम से एक पुरस्कार स्थापित किया। असाधारण कृतित्व के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है। इसके पहले सम्मानित शख्सियत नानाजी देशमुख थे।
    • उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में बेटियों की पढाई के लिए " देवी अहिल्या योजना " की शुरुआत की है। इस योजना के तहत स्नातक तक बेटिओ को मुफ्त शिक्षा मिलेगी। 
    • वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने महारानी अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार शुरू किया था, जो वीरता, खेलकूद और साहित्य के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान करने वाले लोगों को दिया  जाता है । जिसे बाद में मायावती सरकार ने बंद कर दिया था। लेकिन दुबारा जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सत्ता में आये तो  महारानी अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार योजना को फिर से शुरू करते हुए इसकी इनाम राशि को एक लाख से बढ़ाकर पांच लाख रुपए करने की घोषणा की। 
    • उत्‍तराखंड सरकार ने भी अहिल्‍याबाई होल्‍कर को पूर्णं सम्‍मान  देते हुए अपने राज्य में  गरीबो के लिए योजना चलती  है। इस योजना का नाम ‘अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी विकास योजना है। अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्‍तराखंड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्मांण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 100000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होल्‍कर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं।
    • मध्यप्रदेश प्रांत में अहिल्या बाई होलकर नि: शुल्क शिक्षा योजना का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय की महिलाओ में शिक्षा का स्तर में सुधार लाना है। इस योजना के तहत महिलाओ को उच्च शिक्षा हेतु 2,000 रुपये तक की किताबें और स्टेशनरी प्रदान जाएँगी। यह योजना पूरी तरह से राज्य सरकार से वित्त पोषित है।
    • इस महान् शासिका के लिए एक श्रद्धांजलि के रूप में इंदौर घरेलू हवाई अडडे् का नाम देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा रखा गया।
    • देवी अहिल्या विश्वविद्यालय भारत के मध्यप्रदेश प्रांत में स्थित इन्दौर जिले में एक विश्वविद्यालय है।इन्दौर विश्वविद्यालय सन 1964  में स्थापित हुआ था। सन 1988  में देवी अहिल्या बाई होल्कर की स्मृति में विश्वविद्यालय का नाम बदल कर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय कर दिया गया।
    • अहिल्याबाई होल्कर मुफ्त यात्र पास योजना- महाराष्ट्र सरकार                           इस योजना के तहत, राज्य परिवहन वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ने  वाले छात्रों को स्कूल जाने के लिए 5वीं से10 वीं कक्षा तक मुफ्त यात्रा रियायतें दे रहा है। यह रियायत अब 12 वीं कक्षा तक के छात्रों के लिए स्वीकृत की जा रही है। यह छूट 100 प्रतिशत है। 
    • सोलापुर विश्वविद्यालय का नाम भी बाद में बदलकर पुण्यश्लोक अहिल्या देवी होल्कर सोलापुर विश्वविद्यालय रखा गया। 
    • महाराष्ट्र के ठाणे में एक बच्चों के बगीचे का नाम अहिल्या बाई के सम्मान में अहिल्यादेवी होल्कर उद्यान रखा गया है।
    • मुकेश नगर (दिल्ली)  स्थित पार्क का नामकरण देवी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर किया गया। पार्क में उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई।
    • अहिल्याबाई होलकर चौक, चर्चगटे स्टेशन के पास , मुंबई 
    •  दिल्ली नगर निगम पंचकुइया मार्ग का नाम परिवर्तित करके  अब इस मार्ग का नाम देवी अहिल्याबाई होल्कर के नाम पर इस मार्ग का नाम रखा।   गौरतलब है कि जिस पंचकुईया के नाम पर इस क्षेत्र और मार्ग का नाम है वहां पर 5 कुंओं का निर्माण ही लोकमाता देवी अहिल्या ने अपनी कुरूक्षेत्र यात्रा के दौरान करवाया था।इस मार्ग का नाम बाद में पंचकुईया रोड़ हो गया था। इस मार्ग के नए नाम की शिला का अनावरण सांसद मीनाक्षी लेखी ने किया है। 
                   कुछ  प्रमुख बातें                                
    • एक समय बुन्देलखंड के चन्देरी मुकाम से एक अच्छा ‘धोती-जोड़ा’ आया था, जो उस समय बहुत प्रसिद्ध हुआ करता था। अहिल्या बाई ने उसे स्वीकार किया। उस समय एक सेविका जो वहां मौजूद थी वह धोती-जोड़े को बड़ी ललचाई नजरों से देख रही थी। अहिल्याबाई ने जब यह देखा तो उस कीमती जोड़े को उस सेविका को दे दिया।
    • इसी प्रकार एक बार उनके दामाद ने पूजा-अर्चना के लिए कुछ बहुमूल्य सामग्री भेजी थी। उस सामान को एक कमज़ोर भिखारिन जिसका नाम था सिन्दूरी, उसे दे दिया। किसी सेविका ने याद दिलाया कि इस सामान की ज़रूरत आपको भी है परन्तु उन्होंने यह कहकर सेविका की बात को नकार दिया कि उनके पास और हैं।
    • एक बार होल्कर राज्य की दो विधवाएं अहिल्याबाई के पास आईं, दोनों बड़ी धनवान थीं, परन्तु दोनों के पास कोई सन्तान नहीं थी। वे अहिल्याबाई से प्रभावित थीं। अपनी अपार संपत्ति अहिल्याबाई के चरणों में अर्पित करना चाहती थीं। संपत्ति न्योछावर करने की आज्ञा मांगी, परन्तु उन्होंने उन दोनों को यह कहकर मना कर दिया कि जैसे मैंने अपनी संपत्ति जनकल्याण में लगाई है, उसी प्रकार तुम भी अपनी संपत्ति को जनहित में लगाओ। उन विधवाओं ने ऐसा ही किया और वे धन्य हो गईं।
    • आड़ा चौक एवं आड़ा बाजार-  लोकप्रिय देवी महारानी अहिल्याबाई होल्कर अपनी उदारता, न्यायप्रियता, धार्मिक सद्भावना, धार्मिक परायणता तथा कुशल प्रशाशन  के लिए बहुत प्रसिद्ध थी।  प्रजा में उनका बहुत आदर और सम्मान था, जनता उन्हे आदर पूर्वक  ‘माँ साहिब’ कहकर बुलाती थी। तुरन्त न्याय चाहने वालो  के लिए राजदरवार में एक घण्टा लटका गया  था। जब किसी को न्याय के लिए रानी के पास जाना होता उसे घंटा बजाकर निडरता पूर्वक न्याय माँग सकता,  और तुरंत ही दरबार लगाकर न्याय सुनाया जाता।  इंदौर  नगर में किसी रास्ते के किनारे एक गाय अपने बछड़े को दूध पिला  रही थी, तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र माले राव होल्कर राजबग्घी द्वारा तेजी से गुजर रहे थे।  मालेराव बचपन से ही शरारती और चंचल स्वभाव के थे ,अचानक बग्घी पर नियंत्रण न होने से और गाय का बछड़ा अचानक उछालकर बग्घी के सामने आ गया और कुचल कर मर गया।  गाय मृतक बछड़े  के पास में खड़ी फूट-फूट कर रो रही थी। कभी बछड़े को इधर से चाटती, कभी उधर से चाटती। गाय जोर-जोर से रभा रही थी और आंखों से आंसू बह रहे थे। गाय बहुत देर तक अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक मनाती रही । तत्पष्चात उठकर देवी अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टंगे उस घण्टे के पा जा पहुँची, जिसे अहिल्याबाई ने प्राचीन राजपरम्परा के अनुसार त्वरित न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था, अर्थात्‌ जिसे भी न्याय की जरूरत होती,वह जाकर उस घन्टें को बजा देता था, जिसके बाद तुरन्त दरबार लगता था और तुरन्त न्याय मिलता।                            मातेश्वरी अहिल्याबाई होल्कर भगवान शिव की पूजा अर्चना में मग्न थीं। पूजा के समय  न्याय के घंटे की आवाज सुनकर रानी दरबार में आयी और देखा कि - “घंटे की डोरी गाय के मुंह में लगी है , जो घंटे को जोर - जोर से बजा रही है”। गाय के आंखों से आंसू निकल रहे थे। आज  उन्होंने ऐसा  दृश्य देखा कि एक गाय न्याय का घन्टा बजा रही है । देवी ने तुरन्त प्रहरी को आदेश दिया कि गाय के मालिक को दरबार में हाजिर किया जाये। कुछ देर बाद गाय का मालिक हाथ जोड़ कर दरबार में खड़ा था। देवी अहिल्याबाई ने उससे कहा कि ” आज तुम्हारी गाय ने स्वंय आकर न्याय की गुहार की है । जरूर तुम गौ माता को समय पर चारा पानी नही देते होगे। ”   
              उस व्यक्ति ने 
      भरे दरबार में हाँथ जोडकर कहा  की माता श्री,  गौ माता अन्याय की शिकार हुई हैं , लेकिन उसका कारण मै नहीं कोई और है। सभी लोग शांत खड़े रहे। डर के कारण किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि राजकुमार की लापरवाही को कैसे बताया जाए? रानी ने पुनः कहा- “डरो मत, निःसंकोच बताओ। क्या हुआ है ? तब कहीं हिम्मत जुटाकर  उसने बताया कि “मां साहेब आपके पुत्र कुँवर मालेराव की राजबग्घी द्वारा इस गाय का बछड़ा कुचल कर मर गया है। अपने पुत्र को अपराधी जानकर अहिल्याबाई जरा सा भी विचलित नहीं हुई। उन्होंने तुरंत ही मलेराव  की पत्नी मेनाबाई को दरबार में बुलाया और पूछा की अगर कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दे तो उसे क्या सजा मिलनी  चाहिए?                                        मालो राव जी की पत्नी ने  कहा- जिस प्रकार से हत्या हुई है उसी प्रकार से प्राण-दंड मिलना चाहिए।  रानी ने गाय को न्याय देते हुए कहा - “ जिस स्थान पर गाय का बछड़ा मरा है , उसी स्थान पर माले राव होल्कर को लिटा कर बग्गी से कुचलकर मृत्युदंड दिया जाए“। महारानी के सख्त आदेशानुसार कुँवर मालेराव के हाथ-पैर बांधकर घटनास्थल पर लिटा दिया गया। देवी अहिल्याबाई होल्कर की आज्ञा पर  भी सारथी  ने यह पाप करने से विनम्रता पूर्वक साफ मना कर दिया। क्यूंकि  वह ही एक राजकुल के  कुलदीपक थे ,सारथी की विवशता को समझते हुए न्याय प्रिय रानी ने स्वयं राज बग्घी पर बैठकर लगाम अपने हाथ में थाम ली। यह सब देख कर समस्त प्रजा कुँवर मालेराव के लिए दया की प्रार्थना करने लगी। चारों तरफ सन्नाटा छा गया। किसी भी अधिकारी में हिम्मत नहीं थी जो रानी को रोक सके। रानी दूर जाकर तेजी से बग्घी  दौड़ाती हुई बंधे पड़े मालेराव की ओर आ रही थी।                                                        तभी प्रजा यह देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि कुंवर की रक्षा के लिए वही गाय स्वयं बग्घी के सामने आकर खड़ी हो गई है। बग्घी के सामने गाय के आने पर रानी ने बग्घी को रोक लिया। बग्घी पर सवार रानी ने गाय को हटाने का आदेश दिया ,  लोगों  ने गाय को पकड़कर हटाया  और देवी माँ ने फिर से बग्घी को दौड़ाया , लेकिन फिर से गौ माता सामने आकर खड़ी  हो गयी। तब सभा में उपस्थित  समस्त प्रजा व उच्च अधिकारियों ने देवी अहिल्याबाई होलकर से प्रार्थना करते हुए कहा - “ माँ साहिब ! जब गाय ने कुँवर मालेराव को माफ कर दिया है तो आप भी माफ कर दीजिए “ पहले तो रानी ने नहीं मानी लेकिन कुछ समय सोचने के बाद विधि का विधान समझ कर सभी की राय मान ली तथा मालेराव को माफ कर दिया। तब  से ही इंदौर में राजबाड़ा के पास स्थित  उस स्थान का नाम आड़ा चौक एवं उस बाजार का नाम आड़ा बाजार पड़ गया जो कि  आज तक प्रचलित है।
    •  ऐसी एक किस्सा उनके सोने के झूले का है। महेश्वर स्थित राजबाड़ा (किले) में मां अहिल्याबाई का सोने का झूला था ऐसा बताया जाता है। बहुत वर्ष पहले कुछ चोरों ने उसे चुराने का दुष्प्रयास किया था। चोर आसानी से उसे चुराकर महेश्वर से पूर्व में लगभग 25-30 किमी धरगांव के आसपास तक ले आए, मगर धरगांव पार करने के पहले ही उनकी आंखों की ज्योति चली गई और वे पकड़ा गए।
                                                   
           प्रमुख  किताबें (मराठी  भाषा )                            
    • अहिल्याबाई –   हीरालाल शर्मा
    • अहिल्याबाई चरित्र –  पुरुषोत्तम
    • अहिल्याबाई चरित्र – मुकुंद वामन बर्वे
    • कर्मयोगिनी – विजया जहांगिरदार
    • ज्ञात-अज्ञात अहिल्याबाई होल्कर – विनया खडापेकर 
    • पुण्यश्लोक अहिल्या- R W Tikore Kumthewala
    • मातोश्री - सुमित्रा महाजन ( प्रधानमंत्री  नरेंद्र  मोदी जी ने इसका अनावरण किया था।
    • अहिल्याबाई होलकर : गोविन्दराम केशवराम जोशी (हिंदी)
    • अहिल्याबाई-उदयकिरण : वृन्दावन लाल वर्मा (हिंदी)
    अहिल्याबाई होल्कर  के बारे में प्रमुख लोगों के वक्तव्य –
    •   पं. जवाहरलाल नेहरू कहते हैं कि-“जिस समय वह गद्दी पर बैठीं, वह 30 वर्ष की नौजवान विधवा थीं और अपने राज्य के प्रशासन में वह बड़ी खूबी से सफल रहीं वह स्वयं राज्य का कारोबार देखती थीं, उन्होंने युद्धों को टाला, शांति कायम रखी और अपने राज्य को ऐसे समय में खुशहाल बनाया, जबकि भारत का ज्यादातर हिस्सा उथल-पुथल की हालत में था इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि आज भी भारत में सती की तरह पूजी जाती हैं |
    •   राव बहादुर कीबे ने उचित ही कहा है-
    “Show what a leading part the pious lady Ahilya Bai took in the stirring events of the time”. 
    • भू. पू. उपराष्ट्रपति डॉ. गोपालस्वरूप पाठक कहते हैं-“अहिल्याबाई भारतीय संस्कृति की मूर्तिमान प्रतीक थीं।  कितने आपत्ति के प्रसंग तथा कसौटियों के प्रसंग उस तेजस्विनी पर आए, लेकिन उन सबका बड़े धैर्य से मुकाबला कर धर्म संभालते हुए उन्होंने राज्य का संसार सुरक्षित रखा, यह उनकी विशेषता थी. उन्होंने भारतीय संस्कृति की परम्पराएं सबके सामने रखीं। भारतीय संस्कृति जब तक जाग्रत है, तब तक अहिल्याबाई के चरित्र से ही हमें प्रेरणा मिलती रहेगी।
    §  An English poem written by Joanna Baillie in 1849 reads:

    "For thirty years her reign of peace, The land in blessing did increase; And she was blessed by every tongue, By stern and gentle, old and young. Yea, even the children at their mothers feet Are taught such homely rhyming to repeat "In latter days from Brahma came, To rule our land, a noble Dame, Kind was her heart, and bright her fame, And Ahlya was her honoured name."
    • डॉ. उदयभानु शर्मा उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं-“मेरी ही गोद में विश्व का वह अनोखा रत्न खो गया।  इस सोच में महेश्वर का किला आज भी नतमस्तक हो आँसू बहा रहा है।  नर्मदा भी इसी कारण प्रायश्चितस्वरूप, निस्तब्ध रात्रि में उस घाट पर, जहाँ देवी का भौतिक शरीर पंचत्व को प्राप्त हुआ था, दुःखी होकर विलाप करती हुई दिखाई पड़ती है । उनकी श्रेष्ठता इन्दौर की शासिका होने में नहीं है, क्योंकि उनका त्याग इतना अनुपम, उनका साहस इतना असीम, उनकी प्रतिभा इतनी उत्कट, उनका संयम इतना कठिन और उनकी उदारता इतनी विशाल थी कि उनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है उनके पवित्र चरित्र और विराट प्रेम ने उन्हें लोकजीवन में लोकमाता का वह उच्चासन दिया, जो संसार में बड़े सम्राटों-साम्राज्ञियों को भी सुलभ नहीं रहा’ ।
    •  John Keay called her 'The Philosopher Queen', a reference perhaps to the 'Philosopher kingBhoj:                           
      "Ahilyabai Holkar, the 'philosopher-queen' of Malwa, had evidently been an acute observer of the wider political scene. In a letter to the Peshwa in 1772, she had warned against association with the British and likened their embrace to a bear-hug: "Other beasts, like tigers, can be killed by might or contrivance, but to kill a bear it is very difficult. It will die only if you kill it straight in the face, Or else, once caught in its powerful hold, the bear will kill its prey by tickling. Such is the way of the English. And in view of this, it is difficult to triumph over them."
    •   उनकी एक समकालीन आँग्ल कवयित्री जोना बेली ने कहा –
    “For thirty years her reign of peace, The land in blessing did increase, And she was blessed by every tongue, By stern and gentle; old and young.”
    •  देवी अहिल्या बाई फिल्म में मल्लिका प्रसाद ने अहिल्या बाई की भूमिका निभाई है।
    • One English writer quoted that Akbar is among male sovereigns, and Ahilyabai is among female sovereigns.
    • कहते हैं कि अहिल्या के घर के दरवाजे दीन दुखियों के लिए हमेशा खुले रहते थे।  वह सब के लिए मां थीं।  वह सबकी बात सुनती थीं और मदद करती थीं।  इसलिए जब 1795 में उनका निधन हुआ तो चारों तरफ शोक फैल गया।  सब इस तरह फूट-फूट कर रो रहे थे मानो उन्होंने अपनी मां को खो दिया हो। 
                              मृत्यु                                
    • राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। 
    • 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। 
    • अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजीराव होल्कर इन्दौर की गद्दी पर बैठा।
    एनी बेसंट लिखती हैं, “इंदौर अपनी उस महान और दयालु रानी के लिए जितना शोक मनाये कम था। आज भी उनको सभी अपार सम्मान के साथ याद करते हैं।”

     यह एक सत्य के रूप में कहा जा सकता है की  “अहिल्याबाई  एक न्याय और  धर्म से परिपक्व शाशक थीं, हिन्दुस्तान के इतिहास में उन्होंने जो करके दिखाया यह एक बड़ा प्रभावशाली  प्रयोग था।  राज्य कार्य की मुख्य केंद्र एक उपासना परायण, धर्मनिष्ठ स्त्री के हाथ में आई थी। सारे भारत के इतिहास में यह एक विचित्र प्रयोग ही कहा जाएगा जो स्त्रियाँ निवृत्ति निष्ठ होती हैं, वे राज कार्य भी चला सकेंगी, सोची नहीं जा सकती थी | परन्तु मराठों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जो अहिल्याबाई के हाथ में राज्यसूत्र सौंपा। उन्होंने बहुत अच्छी तरह राज्य चलाया।                           
    शस्त्रबल से दुनिया को जीतने का प्रयास बहुत सारे राजाओं ने किया, लेकिन प्रेम से, धर्म से जिन्होंने दुनिया को प्रभावित किया, उनमें अहिल्याबाई ही एक ऐसी निकलीं जो भारत के सब प्रांतों को धर्म, बुद्धि, प्रेम से जीत सकी। भारत के समूचे ज्ञात इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर का स्थान अद्वितीय है” I

    इतिहास में तो राजरानी के बारे में तो बहुत कुछ पढ़ने को प्राप्त हो जाता है लेकिन उनके हमारे समाज में योगदान और लोकप्रियता के अनुसार काफी कम है।अहिल्या बाई हिंदुस्तान में वीरांगनाओं की प्रतीक हैं। उनके अदम्य साहसिक कार्य इस बात को प्रमाणित  के लिए पर्याप्त हैं कि हिंदुस्तान की नारि समाज  में साहस, सौर्य और समर्पण की भावना आदिकाल  से चलती आई है। इनके बारे में जानने का अधिकार बच्चे, युवा या यूँ कहे की हमारे देश के हर नागरिक को है।
      

    • Source - Wikipedia,  Wikimedia , News Paper , Magazine 
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    Comments

    1. वाह दिल खुश कर दिया आपने एसी महान वीरांगना समाजसेवी राजमाता अहिल्या बाई का विस्तृत वर्णन किया इसके लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं हृदय से आभार
      मुझे गर्व है एसी भारत की वीरांगना राजमाता अहिल्या बाई होल्कर पर
      मेरे वाट्सअप नंबर 7000433208

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